हैप्पी फ़्रेण्डशिप डे
दोस्तों,खुश रहो आबाद रहो।
आज दुश्मनो की एक ना चलेगी।
मेरे दोस्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
इसी विषय को मुख्य रखते हुए मै एक कविता लिख रहा हूँ। उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी। दोस्तों मुझे लगता है कि दोस्ती दिनों की मोहताज नही होनी चाइये या यूँ कहे की कोई भी फेस्टिबल दिन/दिनाक पर आधारित नही होना चाइये। ज्यादातर लोग हम में से ऐसे ही करते है कुछ विशेष दिनों पर ही बरसाती मेंढक की तरह बाहर निकलते है। थोड़ी सी आहट हुई नई की पोह फटते ही फुदक के बाहर। चलो ये तो रही बात मौसम के संग हमारे व्यक्तित्त्व की बात,जो की रोज के रोज बदलता है। आओ अब चलते है मेरी कविता की तरफ मैंने कभी सपने मे नही सोचा था कि कभी मै और कविता लेखन क्या मै सपना देख रहा हूँ जरा कोई कचोटी काटे मुझे ताकि मुझे एहसास हो मेरे लेखन का। मुझे लग रहा है मै विषय से हट रहा हूँ आईये चलते है। कविता की तरफ।।।।।।।।।।।।।
शीर्षक---तू और मै
तू उजली किरण भोर सी हैं, मै ठहरा अँधेरा संध्या का ।
तू सुबह की सौंधी हवा सी है,मै गर्म हवा का झोंका सा।।
तेरी रौशनी मे फूल खिल जाते मेरी रात ढले तो मर जाते।
तुझसे ही सब रँग निखरते हैं मुझसे सब रँग बिखर जाते।।
काश की होता यूं भी कभी दिल के अरमान निकल जाते ।
धूप की मार सह सह कर है पत्थर भी सारे पिघल जाते,।।
तुझमे भी कुछ खामिया होंगी मै भी गलती का पुतला हूँ।
वक़्त ने जिसको दूर किया.. अदना उम्मीद का कतरा हूँ ।।
तुम मिलन की बेला ढूंढ़ रही, मै भी करता इंतज़ार रहा ।
आ रमन से मिलने की खातिर तुझको भी उससे प्यार रहा ।।
दोस्तों उम्मीद करता हूँ की मेरा ये तुच्छ प्रयास आपको पसंद आयेगा। गर पसंद आये तो आभार स्वरूप अपना प्यारा like&share करे इस पोस्ट को।
ध्न्यवाद सहित
रमन भगत
पठानकोट
दोस्तों,खुश रहो आबाद रहो।
आज दुश्मनो की एक ना चलेगी।
मेरे दोस्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
इसी विषय को मुख्य रखते हुए मै एक कविता लिख रहा हूँ। उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी। दोस्तों मुझे लगता है कि दोस्ती दिनों की मोहताज नही होनी चाइये या यूँ कहे की कोई भी फेस्टिबल दिन/दिनाक पर आधारित नही होना चाइये। ज्यादातर लोग हम में से ऐसे ही करते है कुछ विशेष दिनों पर ही बरसाती मेंढक की तरह बाहर निकलते है। थोड़ी सी आहट हुई नई की पोह फटते ही फुदक के बाहर। चलो ये तो रही बात मौसम के संग हमारे व्यक्तित्त्व की बात,जो की रोज के रोज बदलता है। आओ अब चलते है मेरी कविता की तरफ मैंने कभी सपने मे नही सोचा था कि कभी मै और कविता लेखन क्या मै सपना देख रहा हूँ जरा कोई कचोटी काटे मुझे ताकि मुझे एहसास हो मेरे लेखन का। मुझे लग रहा है मै विषय से हट रहा हूँ आईये चलते है। कविता की तरफ।।।।।।।।।।।।।
शीर्षक---तू और मै
तू उजली किरण भोर सी हैं, मै ठहरा अँधेरा संध्या का ।
तू सुबह की सौंधी हवा सी है,मै गर्म हवा का झोंका सा।।
तेरी रौशनी मे फूल खिल जाते मेरी रात ढले तो मर जाते।
तुझसे ही सब रँग निखरते हैं मुझसे सब रँग बिखर जाते।।
काश की होता यूं भी कभी दिल के अरमान निकल जाते ।
धूप की मार सह सह कर है पत्थर भी सारे पिघल जाते,।।
तुझमे भी कुछ खामिया होंगी मै भी गलती का पुतला हूँ।
वक़्त ने जिसको दूर किया.. अदना उम्मीद का कतरा हूँ ।।
तुम मिलन की बेला ढूंढ़ रही, मै भी करता इंतज़ार रहा ।
आ रमन से मिलने की खातिर तुझको भी उससे प्यार रहा ।।
दोस्तों उम्मीद करता हूँ की मेरा ये तुच्छ प्रयास आपको पसंद आयेगा। गर पसंद आये तो आभार स्वरूप अपना प्यारा like&share करे इस पोस्ट को।
ध्न्यवाद सहित
रमन भगत
पठानकोट